Parmatmana

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परमात्मनः जो एक छोटे से परिवार में जन्मा जिसकी शिक्षा रुपयों के अभाव में बार बार रुकी ] जिसको शायद रात को खाना मिले या न मिले यह भी भरोसा नहीं था] लेकिन उसके सपने बहुत बड़े थे ] अच्छी ज़िंदगी जीना ] सुख जो किताबों में होते हैं ] स्वर्ग के सपने जो तुम्हारे शास्त्रों में वर्णित हैं उन्हें यही इसी धरा पर पाना। लेकिन मंज़िल अभी केवल दिमाग़ में थी ] चित्रों में थी ] राह सामने थी लेकिन कदमों में। छोटी छोटी गति थी कदमो में। खैर परमात्मनः चले अकेले ] बिना किसी के सहारे ] अकेले अपने लक्ष्य की ओर ] जो शायद कभी किसी ने सोचा भी न होगा वो काम पकड़ा। अपने हाथ में। फिर पूरी दिल्ली में ] NCR में अपनी छाप छोड़ी करोड़ों रुपये कमाए नए व्यवसाय से ] यह तो थी सांसारिक ज़िंदगी। लेकिन रुपयों से ही अगर भूख मिट सकती तो सरे धनवान सबसे सुखी होते ] तृप्त होते। लेकिन धनवान ही सबसे ज्यादा अतृप्त दिखते हैं। दुखी ] उदिग्न ] अशांत दिखते हैं। यह अशांति प्यास अतृप्तता भी थी परमात्मनः के भीतर। फिर एक नई खोज प्रारंभ हुई ] स्वयं की खोज ] जिसने परमात्मनः को जगह जगह भटकाया। कभी किसी मंदिर तो कभी किसी तीरथ ] चूँकि परमात्मनः हिन्दू परिवार में ही पैदा हुए थे तो ज़ाहिर है खोज हिन्दू मंदिरों में ] हिन्दू तीर्थो में और हिन्दू शास्त्रों से ही करनी थी। तो परमात्मनः ने अनेको शास्त्रों का अध्ययन किया। जप किया अनेको वर्ष रोज के १२-१२ घंटे ] व्रत रखा है लगातार पांच वर्ष ] रात रात भर बैठकर कपकपाती हुई ठंड में ] हरिद्वार में जनवरी के दिनों में सर छोटी ] गले में कंठी ] जनेऊ ] माला झोली मस्तक तिलक। सभी का प्रयोग किया। उस भगवान को खोजने में जिसके चित्र तो सभी मंदिरों में टंगे हैं जिसका वर्णन तो सभी शास्त्रों में है लेकिन जिसका साक्षात्कार किसी को भी नहीं हुआ है। इसी खोज के दौरान परमात्मनः १५-१८ वर्ष बृंदावन की 1 चिर परिचित कृष्ण भक्ति संस्था से भी जुड़े रह। वहाँ के मुख्य संन्यासी गोपाला कृष्णा से जब १९५५-९६ के दौरान जिज्ञासा की ] कि परमात्मा का साक्षात्कार कैसे संभव है तो वो कहता था कि कलियुग में ईश्वर का साक्षात्कार केवल पत्थर की मूर्ति के रूप में ही संभव है। परमात्मनः उसके उत्तर से संतुष्ट तो नहीं हुए। लेकिन इतना ज्ञात हो गया कि ये लोग केवल अपना

केवल अपना व्यापार ही चला रहे हैं लेकिन परमात्मनः जुड़े ही रहे उसी संस्था से कि शायद कोई और तो होगा] मुखिया ना सही कोई छोटा साधु - संन्यास। जिसे उस परम का दीदार हुआ होगा। सैकड़ों महात्मा मिले लेकिन सभी 1 ही तरह के पोंगा पंडित ही थे।

किसी ने कहा माला  को 2 घंटे से बढ़ाकर दस घंटे कर  दो ] किसी ने कहा एकादशी से काम नहीं चलेगा पांच वर्ष  उपवास करो।  किसी ने गोवर्धन परिक्रमा को कहा ] किसी ने पूरी पूरी रात हरिद्वार में कपकपाती ठंड में जप को कहा।  खैर सभी कुछ किया लेकिन अंत में स्वयं को पाया वंही का वंही।  बल्कि और उलझा हुआ। खोज जारी रही। प्यास गहरी होती गई। 

अचानक 2015 के लगभग परमात्मा को एक अघोरी मिला ] शमशान का साधक बताने लगा स्वयं को ] वो शायद सम्मोहन विद्या जानता था किसी जोधपुर के गुरु का शिष्य स्वयं को बताता था। उसने कहा कि तुम्हें अगर परम की खोज करनी है तो श्मशान की साधना करनी होगी। जिसने जीवन के क्षेत्र में अपना व्यापर 1 नए मार्ग से स्वयं के बनाए हुए मार्ग से शुरू करने का जोखिम उठाया हो वो भला कहाँ डरे \ परमात्मनः चले उसी के साथ ] उसी के पथ पर ] श्मशान की साधनाओं का मार्ग देखा लेकिन बाद में समझ आया कि वो बेचारा ग़रीब आदमी चाहता था कि परमात्मनः भी उसी की तरह १-२ भूत प्रेत सिद्ध कर ले और लोगो को सम्मोहित कर स्वयं को सद्गुरु] सिद्ध] या श्रेष्ठ कहलवाने का दावा करें। जैसा वो या उसका गुरु आज तक करते आये है। जैसा आज के समय में कोई भागेश्वर धाम के नाम से या करोली सरकार के नाम से ठग लोग कर रहे हैं ] वो लोगों को भूत प्रेत के नाम से डरा रहे हैं ] ग्रसित बताकर उनके उपचार का ढोंग कर रहे हैं तथा रुपया लूटने का धंधा चला रहे है। इन में हिंदू ] मुस्लिम ] ईसाई या अन्य सभी धर्मों के लोग शामिल है। लेकिन परमात्मनः जानते थे कि स्वयं की खोज सिद्ध होने पर नहीं ] सम्मोहन विद्या सिखने पर नहीं ] स्वयं के पैर पुजवाने पर नहीं ] मैं की समाप्ति पर मैं के मरने पर ] अहंकार के तिरोहित होने पर ही संभव है। खैर ३-४ वर्षा यहाँ भी ख़राब करने पर परमात्मनः ] लाखो रुपये उस अघोरी पर बर्बाद करने के बाद परमात्मनः वहाँ से भी आगे बढ़े। लेकिन अब कुछ बदल गया था भीतर। खोज ही शायद पूर्णता में तब्दील हो चुकी थी। इतने वर्ष भटक भटककर परमात्मनः के मन में यह बात बैठ चुकी थी ३०-३५ वर्ष ख़राब हो गए मूर्तियों में चित्रित परमात्मा ] भगवान ] ईश्वर शायद हो ही नहीं या हो तो काल्पनिक हो ] मनगढ़ंत हो। अब परमात्मनः की दौड़ का रुख़ समाप्त हो चुका था ] श्मशान की सिद्धियों की चाह ] चरण पुजवाने की चाह ] जो अक्सर लोग कर लेते हैं जिसके पीछे उनकी मंशा होती है की किस तरह लोगो को मुर्ख बना कर उनका रूपया ऐठा जाये ] वो तो परमात्मनः में कभी भी थी ही नहीं। क्योकि परमात्मनः अपना एक अच्छा ख़ासा व्यापार कर रहे थे ]लग्ज़री कारों में पहले से ही घूमते थे ]तो धन की भी चाह नहीं थी ] श्मशान की साधनाओं की दौड़ भी ख़त्म हो गयी ] अब सारी राहें जो दूर ले जाती थी वह स्वयं की ओर आ गई ] स्वयम ही मिटा दी गई। अब परमात्मनः अकेले खड़े थे। स्वयं के पास कोई भी मार्ग नहीं था चारों ओर] ख़ाली केवल ख़ाली। परमात्मनः रोज शाम को आराम करने ] विश्राम करने बैठे रहते थे पार्कों में ] वृक्षो के पास। जहाँ वो देखते कबूतर दाना चुग रहे हैं ] गिलहरी दाना खा रही है ] कौवे गीत गए रहे है ] फूल पत्ते कांटे वृक्ष घास पात सभी निर्त्य कर रहे है। अचानक परमात्मा को भी सम्फुरणा हुई कि यह सब परमात्मा के दिए हुए जीवन से इतना ख़ुश हैं तो मैं क्यों दुखी \ इतना सोचने मात्र से ही परमात्मनः के भीतर एक कंपन हुआ तो मानो सृष्टि ही बदल गई ] जो कोवा अभी तक जीवन के 52 वर्षो तक शोर मचाता नज़र आता था वो वोवा आज वेदवाणी गाता दिख रहा था ] जो सूखे पत्ते आज तक पार्को में गंदगी फैलते दिखते थे आज वो सूखे पत्ते हवा के चलने मात्र से नाचते हुए दिखने लगें। परमात्मनः क्या बदले सृष्टि ही बदल गई। पूरा का पूरा रूपांतरण हो गया मैं के मिटते ही तू का आविर्भाव हो गया। जीवन जो अब तक बोझ था जो विचार अब तक दूषित थे हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार ] दुखालयम ] अशवतवम ] सुखालयम ] शाश्वतं ] अहम ब्रह्मास्मि में तब्दील हो चुके थे। अब जिसे ज्ञात हो गया की में ही ब्रम्ह हूँ वो कही यह थोड़े ही सोच सकता है कि बाकि पापी है कि बाकि दुष्ट है \ नहीं यहाँ सभी तो ब्रम्ह है पूरे पूरे ब्रम्ह। तो मैं तुम हिंदू मुसलमान सिख ईसाई बौद्ध जैन कुत्ता गाय कोवा बिल्ली हम सभी मिलकर ही तो पूर्ण परमात्मा बने ] फिर कौन छोटा कौन बढ़ा \ सभी एक ही तो है एकात्मकता सध गई। चारो और वही जीवन नाचता गाता दिखाई दिया ] साक्षी भाव का ] दृष्टा भाव का उदय भीतर से ही हो गया । अब न कोई हिन्दू बचा ] न मुसलमान ] न सिख न ईसाई ही। अब तो जीवन बचा ] परमात्मा बचा ] ब्रम्ह बचा। परमात्मनः ने अपने हिंदू होने के धार्मिक चिन्ह मिटा दिए क्योंकि ईश्वर कहीं हिन्दू होता है \ ख़ुदा कही मुसलमान होता है \ वो तो बस होता है। हम सभी उसी के तो स्वरुप है। दौड़ समाप्त हुई कंही पहुंच कर नहीं ] स्वयं पर आकर। दूर कही नहीं जाना ] स्वयं पर आना है। आज तक हम सभी उसे खोजने दूर दूर भटकते रहे ] कभी स्वयं को ] भटकने वाले को नहीं देखा। कभी सोचा ही नहीं कि जो भटक रहा है ]जो खोजना चाहता है वही तो खोजा जाने वाला है। अब परमात्मा ने देखा कि चारों तरफ लोगों ने धर्मों के नाम पर ना जाने क्या - क्या पाखण्ड फैला रखा है तो परमात्मनः ने सोचा कि संसार से यह पाखंड की दुकानों को हटाया जाए। भारत जैसे देश में जहाँ धर्म पर बात करने से ]पाखंड पर बात करने से ] सभी कतराते हैं क्योंकि यहाँ हर वो व्यक्ति जो किसी न किसी धर्म की दुकान से पेट पालता है वो केस करने की धमकी दे देता है। फिर भी किसी की भी परवाह न करते हुए परमात्मनः ने पाखंड की दुकानों से लोगों को सावधान करने का बीड़ा उठाया। परमात्मनः ने लोगों को अपने लेक्चर्स के माध्यम से समझाया कि तुम सभी मुक्त ही हो। जो बंधन तुमने समझे है वो तुम्हारे ही सभी के बांधे हुए है। तुम्हे कोई भी बंधन नहीं है। और पर्मात्मा खुदा ईश्वर सत्य नाम है तुम सभी के जीवन का। खुदा ] ईश्वर ] परमात्मा किसी व्यक्ति का नाम नहीं है और न ही यह कहीं दूर किसी गृह पर बैठा व्यक्ति नहीं है। वो जो धारणा है कि 33 करोड़ देवी देवताओ की] वो किसी ज़माने में किसी बुद्ध ने अपनी आँखों से देखे होंगे तब उस समय कही विश्व की जनसंख्या भी 33 करोड़ रही होगी इसलिए उस बुद्ध ने कह दिया 33 करोड़ देवी देवता है लेकिन आज दुनिया में 33] करोड़ देवी देवता नहीं है आज हम सभी 770 करोड़ देवी देवता है। हमें सभी का सम्मान करना है हम सभी तो देवी देवता है हम सभी तो ईश्वर है सभी का सम्मान सभी से प्रेम करना ही वास्तविक धर्म है। हम सभी मिलकर ही वो विराट बने। अगर हम सभी खंड -खंड हो जाये तो पर्मात्मा की खुदा की धारणा भी छिन्न भिन्न हो जाएगी। परमात्मनःने समझाया कि अगर किसी युद्ध में हम सभी मारे जाएं तो बताओ कि ईश्वर खुदा कहीं जीवित बचेगा \ नहीं ! हमारे मरते ही खुदा भी मिट जाएगा ईश्वर भी समाप्त हो जाएगा क्योंकि हम सभी मिलकर ही तो वो बने। वो जो धारणा है कि परमात्मा का ] खुदा का जन्म नहीं होता सत्य ही तो है। जीवन !- जीवन का जन्म होता है क्या \ नहीं !- जीवन तो अनादि काल से ही है वो जो धारणा है कि परमात्मा ] ख़ुदा का अंत कभी नहीं होता। तो जीवन का अंत कभी होता है \ नहीं !- मेरे जाने के बाद ] तुम्हारे जाने के बाद भी जीवन बचेगा। हमारे बच्चो में। हम सभी के मिटने के बाद भी जीवन बचेगा पशु पक्षियों में ] चाँद तारो में।

जीवन कभी भी समाप्त नहीं होता परमात्मा ]खुदा ]जीवन कभी नहीं मरता।  ईश्वर ]जीवन ]परमात्मा ]खुदा नाम है इस जीवन धारा का।  

जो बह रही है हम सभी के भीतर। लेकिन गलती हम से क्या हुई कि हम उन लोगों के कहने पर आ गई जो कभी भिखमंगे थे जिन्होंने अपना पेट भरने हेतु धर्म की दुकानें खोल दी


और बन बैठे हम सभी के अग्रगण। हाँ उनको दुकानें ही कहना ठीक होगा क्योंकि बनायी दुकानदारों ने। कृष्ण ने नहीं बनायी ]बुद्ध - महावीर ने नहीं बनायी ] मोहम्मद ]जीसस ]नानक ]कबीर ने नहीं बनायी। यह महापुरुष तो आये अपने ही जीवन में सत्य को पाया स्वयं के ब्रम्ह होने को पहचाना और जीवन को स्वर्ग में रहकर जिया और जीवन को ही स्वर्ग बनाकर चले गए। लेकिन दुकानें बनायी इन सभी के बाद आए मैनेजरों ने क्योंकि उन्होंने न तो सत्य को समझा ] ना पाया। शायद उनकी मंशा सत्य को समझने और पाने की थी ही नहीं। क्योंकि तुम्हारी तो पंक्ति यह ^^भूखे पेट न भजन होये ^^ वो बेचारे कामचोर भिखारी ही रहे होंगे और समाज में आज हो क्या रहा है \ कोई राम कृष्ण की दुकान चला रहा है ] कोई आल्हा की ] कोई भूत प्रेत वाला बाबा बने बैठा है। कोई सिद्ध कोई सद्गुरु नाम रखें अपनी दुकाने खोले बैठा है।

कोई यह नहीं समझा रहा है कि तुम ही  पूर्ण परमेश्वर हो जिसे तुम  खोज रहे हो। 

जीवन का अर्थ केवल इतना ही है कि तुम सभी मिल जुलकर हिन्दू ]मुस्लिम ]सिख ]ईसाई ]बौद्ध ]जैन को भूलकर प्रेम मोहोबत से इस जीवन को जी लो। क्योंकि अगर यह पाठ लोगों की समझ में आ गया तो मंदिर ]मस्जिद की लड़ाई ही समाप्त हो जाएगी। फिर राजनेता और धर्म नेता अपनी अपनी रोटियां कहाँ से सेकेंगे। परमात्मनः की मुख्य शिक्षाओं में से मुख्य है कि अगर दुनिया में से मंदिर ]मस्जिद ]गिरजे ]गुरुद्वारे ]बौद्ध विहार] जैन मंदिर यह जितने भी धर्म स्थल है वो मिट जाए और जितने भी धर्म ग्रंथ है वो मिट जाये तो दुनिया यक़ीनन सुन्दर हो जाएगी। लोग प्रेम पूर्वक रहने लगेंगे। दूसरी की अगर इस दुनिया में से सभी देशो की सीमाओ का अंत हो जाये तो पूरी दुनिया को जो 40-50 % का रक्षा व्यय हर देश अपनी रक्षा पर व्यय करता है वो धन लोगों की सेवा में लगेगा। जिससे यही संसार स्वर्ग बन जायेगा। और ऐसा संभव है जब हर देश के आईएएस-आईपीएस जैसे पढ़े लिखे व्यक्ति मिल जाए तो दुनिया को एक परिवार बनाकर चलाया जा सकता है। और तीसरा कि अगर संसार में से शादी जैसी संस्था समाप्त हो जाए तो जो आज स्त्रियों का शोषण होता है 99 प्रतिशत वो सदा सदा के लिए समाप्त हो जाएगा क्योंकि फिर यह अधिकार इस्त्री के हाथ में हो जाएगा कि उसे इस व्यक्ति के साथ रहना है या किसके साथ अपना जीवन गुजरना है। मंजिल दूर है कठिन है और भारत जैसे पिछड़ी सोच रखने वाले लोगो के लिए तो बहुत कठिन है। अगर आज नीव पड़ी है तो एक न एक दिन महल भी खड़ा होगा। लोग आएंगे और एक -एक ईंट जोड़ते जाएंगें आख़िर एक दिन महल बनेगा ही। और तब तक हमारे देश की बाग डोर किसी धूर्त अनपढ़ राजनेता के हाथ में न होकर अगर कुछ पढ़े लिखे आईएएस ] आईपीएस ] डॉक्टर इंजीनियर ] एडवोकेट ] जज जो रिटायर्ड होने के लगभग हों वो सभी मिलकर एक नई पार्टी बनाये और इस देश को चलाने का ज़िम्मा अपने कंधों पर ले लें तो यही दुनिया हमारा भारत ही स्वर्ग बन जायेगा। जिस स्वर्ग की कल्पना हमने पुस्तकों में की है जिस जन्नत के चित्र हमने बेकार की पुस्तकों में पड़े हैं वो यही हक़ीक़त हो जाएगी। दुनिया में प्रेम होगा भाई चारा होगा। पूरा भारत ग़रीबी के दलदल से निकल कर संपन्न होगा। चारो और खुशहाली होगी ] लोग इसी संसार में नाचेंगे गाएंगे जैसे आज तक यहाँ बुद्ध पुरुष नाचते आये है। और अंत में अगर सत्य का साक्षात्कार करना है तो राम ] कृष्ण अल्ला गोड गुरू नहीं स्वयं को जानो। मैं को खोजने से ही खोज पूर्ण होती है और मै के मिटने पर ही तू का आविर्भाव होता है और जिस दिन कोई मनुष्य स्वयं के दर्श कर लेता है उस दिन वो जान पाता है कि यहाँ सभी ईश्वर है। फिर उसकी कोई भी दौड़ नहीं बचती। फिर असल में आनंद बरसता है क्योंकि अब न कहीं जाना है न कुछ पाना है ] न मुक्ति ] न मोक्ष न स्वर्ग न बैकुंठ ] इस विचार का नाम कि मैं स्वयं में परिपूर्ण हूँ बुद्धत्व है ]निर्वाण है ]मुक्ति है ]मोक्ष है ] परमपद है ] सत्य है ]परमहंस अवस्था है ]विदये होना है। बाकि सिद्ध होना ] सद्गुरु होना ] महामंडलेश्वर होना ] पीठाधीश्वर होना ] पंडित होना ] मौलवी होना ] फाथर होना ] सभी अहंकार के भिन्न भिन्न नाम है। स्वयं को धोखा देने के नाम है और कुछ भी नहीं।




एक पागल की जीवन गाथा। जिसने परमात्मा की प्राप्ति के लिए सभी कुछ किया। जो जो धर्म गुरुओं ने बताया । मंदिरों में आरती करना, पूजा करना, तीर्थों में जाना , गंगा स्नान , व्रत , दीक्षा , माला जो रोज रोज बढ़ती गई। रोज की सौ-सौ माला का जाप होता गया। खाना-पीना छोड़ा। 5 वर्ष का उपवास ,भाति भाति की साधना है। जो जो भी जिस जिस गुरु ने कहा वह वह पूरी तन्मयता से किया लेकिन परमात्मा वह तो नहीं मिला। जब उन गुरुओं को भी ना मिला जिन्होंने यह समझाया तो वह कैसे किसी दूसरे को दे पाते हैं। खैर जीवन निकलता गया। ऊपर से तो धार्मिक होने का ढोंग बढ़ता गया और भीतर से यह धारणा भी बढ़ती गई कि भीतर तो अभी तक खाली है। भीतर तो अंधेरा है। आधी से ज्यादा उम्र समाप्त हो गई लेकिन परमात्मा नहीं मिला। और जब तक यह आग भीतर ना हो तब तक तुम जलोगे कैसे? और जब तक तुम ना जलो , तुम भस्मीभूत ना हो, तब तक तुम्हारी मैं कैसे मिटेगी? तुम्हारा अहंकार कैसे समाप्त होगा और बिना मैं के समाप्त किए कहीं तू उतरता है क्या? इसी तरह समय बीतता गया अनेक गुरु आए और चले गए। कभी कृष्ण भक्ति की संस्थाओं में जाकर माथा रगड़ा और जब उनके गुरुओं से परमात्मा के विषय में पूछा तो जवाब मिला जाओ। मंदिर के भीतर जाकर देख लो। कलयुग में भगवान मूर्ति के रूप में ही दिखते हैं तो परमात्मा ने उस चोला धारी , डंडा धारी गोपाल स्वामी को उत्तर दिया कि अगर मूर्ति ही परमात्मा है तो मूर्ति को तो मैं खरीद कर घर में रख लूंगा तो क्या मैं कह सकता हूं कि परमात्मा मिल गया। या मैंने परमात्मा को पा लिया या मैंने परमात्मा का दीदार कर लिया। उस छोला छाप सन्यासी के पास कोई भी उत्तर नहीं था। उत्तर होता भी कैसे ? वह भी समझता था कि यह परमात्मा नहीं है लेकिन दुकान भी तो चलानी थी। गद्दी भी तो संभालनी थी। फिर परमात्मा के हाथ एक गीता थमा दी गई। यह लो इससे उत्तर खोज लो। इसमें सभी उत्तर मिलेंगे। परमात्मा ने गीता भी पढ़ी कई बार पढ़ी। लेकिन पूरी गीता किसने लिखी? उसी के द्वारा व्याख्या की गई और पूरी व्याख्या में एक ही बात पर मुख्य थी कि इस गीता से पहले वाली जितनी भी गीता आज तक लिखी गई थी, वह गलत है और यही ठीक है। जैसा किसी ने गीता के ऊपर यथारूप लिखा है। किसी ने वास्तविक रूप लिखा। किसी ने सही लिखा भांति-भांति की भ्रांतियां लोग स्वयं ही पाले रहते हैं। पहले से लिखे हुए उत्तर से कंही जिंदगी के प्रश्न हल होते है ? नहीं !

जो गुरु केवल इतना ही कह रहा है कि मैंने जो लिखा वही सत्य है और बाकी सभी का लिखा असत्य है शायद उसे भी अभी तक स्वयं ही सत्य का नहीं पता।  सत्य उसे भी नहीं मिला। 

इस प्रकार कई वर्ष बीत गए। माला की गिनती बढ़ने लगी। सिर की चोटी भी बढ़ने लगी। गले की कंठी के चक्र भी बढ़ने लगे। माला की मोटाई भी बढ़ने लगी, लेकिन परमात्मा आसपास भी नहीं था। वह तो शायद किसी दूर ग्रह पर बैठा था जो शायद ही मरने के बाद भी मिले या कल्पना ही रहे। अगर वह धारणा सत्य है कि कण-कण में परमात्मा है। अगर वह धारणा सत्य है कि जर्रे-जर्रे में खुदा है तो मृत्यु के बाद किसी दूसरे ग्रह पर जाकर मिलता है। यह तो झूठ है। दोनों धारणाएं कैसे सत्य हो सकती हैं। एक धारणा कहती है कि परमात्मा यही है कण-कण में और दूसरी धारणा कहती है कि वो दूर किसी ग्रह पर है। कोई कहता है, तुम्हारे भीतर है कोई कहता संसार में है। कोई कहता है, बैकुंठ में है यंहा नहीं है। एक धारणा कहती है वो गोलोक में है। परमात्मा को आखिर ज्ञात हो गया कि इन लोगो के पास उनके प्रश्नो के उत्तर नहीं है। अब परमात्मा ने रुख किया उत्तराखंड की पहाड़ियों का। वंहा भी कई धर्म गुरु मिले, कई साधु संत मिले , कई गुरु मिले, लेकिन वह भी अलग ही प्रकार के थे। कोई केवल जटाओं को बढ़ाने को ही धार्मिक होना माने बैठा था। कोई केवल तिलक लगाने को धार्मिक होना माने बैठा था। कोई घुंघराले बालों को धार्मिक होना माने बैठा था और कोई लाल कपड़ों को ,तिलक को, कमंडल को ,धार्मिक होना माने बैठा था। सभी वेशभूषा में ही भरमाये हुए थे। कोई नागा होकर शरीर को यातना दे रहा था तथा जड़ बुद्धि हुए बैठा था। जिसके शरीर को सर्दी गर्मी नहीं लगती जिसे शरीर से दुर्गंध आने का भी भान नहीं होता जिसके हाथों और पैरों की चमड़ी इतनी मोटी हो गई कि उसमें कंकड़ पत्थर के चुभने का भी असर नहीं होता? उसे जड़ बुद्धि नहीं तो और क्या कहा जाए? यानी ऐसे तो वह जानवर जिसकी चमड़ी मोटी है, हाथी भैसा इत्यादि सभी को धार्मिक मान लेना चाहिए क्या? नही। ऐसा धार्मिक भी परमात्मा को नहीं बनना था। किसी ने कहा, भोजन छोड़ने से परमात्मा मिलता है तो वह भी 5 वर्ष करके देख लिया। शरीर हल्का हो गया और भोजन ना करने से रोग मुक्त भी हो गया था। फुर्तीला भी हो गया था लेकिन परमात्मा का कहीं भी अता-पता नहीं था। हां, वहां ऐसे ऐसे महात्मा भी मिले जो अहँब्रम्हास्मि का जाप कर रहे थे। पूछा तो ज्ञात हुआ कि जब वह 10 -12 वर्ष के थे तब से कर रहे हैं। 12 वर्ष से एक व्यक्ति जप कर रहा है। आज 80 वर्ष का हो गया है। एक ही शब्द अहँब्रम्हास्मि कि मैं ब्रम्ह हूं। 70 वर्ष होने वाले हैं। अभी तक धर्म का अनुभव नहीं हुआ। कैसा साधन है यह 70 वर्ष तक किया लेकिन अभी तक धर्म नहीं मिला। अभी तक अनुभव नहीं हुआ और अगर हो ही गया तो अब क्यों जपे जा रहे हो? यानी अभी भी भ्रम है। अभी भी भ्रम में ही जीवन चले जा रहे हैं। अभी भी अंधेरे में ही दरवाजा टटोले जा रहे हैं। मतलब यह साधना भी ठीक नहीं है। जिस किसी बुद्ध ने यह उद्घोष किया होगा। अहम् ब्रह्मास्मि तो वह घोष उसके भीतर से निकला होगा क्योंकि उसने अनुभव किया होगा। लेकिन? जड़मति। वह कैसे समझेगा? जड़मति तो केवल शब्द रटेगा । कोई गंगा की आरती कर रहा था, कोई योग कर रहा था। कोई आंखें बंद कर ध्यान के भ्रम में बैठा था लेकिन कोई भी तो उस परमात्मा को देख नहीं पा रहे था । समझा भी नहीं पा रहा था कि वह कैसे दिखेगा? कोई दसोहम की माला फेर रहा था यानी हम परमात्मा के दास हैं। मान रहा था कि दास होना ही हमारा धर्म है। और यही मान रहा था कि परमात्मा मृत्यु पर्यंत किसी अन्य ग्रह पर बैठा मिलेगा। सभी तो कहते हैं कि वह दयालु है, अकारण ही कृपा करता है। अन्य धर्म वाले भी यही कहते हैं बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम तो कैसी कृपा है जो सामने आकर भी नहीं करता। कुछ समझ नहीं आता कहीं तो कुछ भेद है। कहीं तो ऐसी भाषा है जिसे मनुष्य समझ नहीं पा रहा है। जिस कोडिंग को डिकोडिंग नहीं किया जा पा रहा है। कुछ ना कुछ भाषा में दोष है। और सत्य तो ये है कि भाषा में भी दोष नहीं है, समझने में दोष है। परमात्मा यह तो जान चुके थे कि कुछ ऐसा है जो नहीं समझा जा पा रहा है। कोई शिवोहम की माला फेर रहा था लेकिन शिव नहीं बन पाया। कोई अहम् ब्रह्मास्मि की माला फेर रहा था, लेकिन अभी तक भी ब्रम्ह का अनुभव नहीं कर पाया था। कोई सोअहं की माला फेर रहा था लेकिन उससे भी कुछ नहीं हुआ। राम राम, कृष्ण कृष्ण ,शिव शिव सभी मालाएं व्यर्थ होती गई थी। साले कारतूस खाली निकले। जिनसे मैं को मारा जा सके, ऐसा एक भी जिंदा कारतूस नहीं निकला। सारे हथियार चला लिए। आखिर परमात्मा जान चुके थे कि यह मार्ग है भी नहीं। अहम् को समाप्त करने का यह तो वैसा ही मार्ग है जैसा व्यवहार हम पशुओं के साथ करते हैं। ताड़ना देना। तो जड़मति ने स्वयं को ताड़ना देना सताना आरंभ कर दिया। परमात्मा ! उनको तो यह हिंसा का मार्ग लगा भांति भांति के उपाय देखे, लेकिन कोई भी महात्मा ऐसा नहीं मिला जिसकी आंखों में वह परमात्मा ताकता झांकता दिखे। कुछ जड़मति बने रहे, कुछ धार्मिक चोले की आड़ में अपराधी थे जो अपना वेशभूषा बदल कर अपना अपराध छुपाते रहे, वह भी वही थे। कुछ स्वयं का पेट पालने के लिए ही धार्मिक बने और कुछ तो ऐसे मिले जिनके पास कुछ शमशान की क्रियाएं थी। उन्हीं से लोगों को सम्मोहित कर उनका धन लूटने के लिए ही महात्मा का वेष धरे बैठे थे। एक बात बिल्कुल सामान थी सभी में कि धार्मिक होने से ज्यादा महत्व सभी इस बात को दे रहे थे कि धार्मिक दिखा कैसे जाए? कुछ लाल कपड़े पहनकर ,मालाएं पहनकर ,तिलक लगाकर ,जनेऊ ,चोटी धारण कर स्वयं को धार्मिक मानकर खुश हो रहे थे। कुछ सफेद टोपी पहनकर हरा गमछा लेकर स्वयं को धार्मिक माने बैठे थे। कोई क्रॉस धारण किए और कुछ पगड़ी पहने हुए स्वयं को धार्मिक माने बैढा था । पूरी दुनिया धार्मिक होना चाहती है लेकिन सभी एक बात भूल जाते हैं। कि वह परमात्मा कहां है, वह खुदा कहां है जिसकी बात कृष्ण ,बुद्ध ,महावीर ,मोहम्मद ,जीसस ,नानक ,कबीर करते थे। वह कहां है जो इन बुद्धौ की आंखों में झांकता दीखता था, वह दीवानापन कहां है, वह पागलपन कहां है जो इन बुद्धौ में था? भटकते भटकते एक और तांत्रिक भी मिला। अघोरी मिला। उसने भी कई मंत्र दिए और मंत्र जप करवाए । उसने कहा कि ध्यान में मुर्दे की छाती पर बैठकर यह मंत्र जप करो और परमात्मने ने वो भी किया । उसने कहा, ध्यान में मुर्दे का मांस भी खाना पड़ेगा। मदिरा भी ध्यान में पीनी पड़ेगी। सभी जगह से हारा हुआ क्या ना करता यह भी किया। सभी कुछ किया ध्यान में जो जो कहा गया और आखिर अंत में पता चला कि वह मूढ़ तांत्रिक आखिर में किसी भूत की सिद्धि करवाना चाहता था। यह पहली घटना थी जीवन की जब परमात्मा ने जीवन में भूतो और और प्रेतों का साक्षात्कार किया तथा सौ-सौ फुट के कई व्यक्ति भी देखें। फिर उस तांत्रिक का सारा राज खुल चुका था कि उसका धर्म से कोई भी लेना देना नहीं है। उसका परमात्मा से कोई भी लेना देना नहीं था। वह तो एक बहुत ही छोटा सा घटिया व्यक्ति था जो भूत-प्रेत की सिद्धि कर लोगों को भ्रमित कर उनका धन लूटता था और अपना तथा अपनी बीवी का और अपनी बेटी का पेट पालता था। बाद में पता चला उसका गुरु भी यही करता था और दिखावा धार्मिक होने का करता था जैसा सभी लोग कर रहे हैं। अब तक जितने भी व्यक्ति मिले थे, सभी में एक ही बात मुख्य थी कि कोई भी स्वयं अपने लिए रोटी नहीं कमाना चाहता। वह सभी इस वेशभूषा को केवल इसलिए पहने हुए थे ताकि लोग धार्मिक समझे और दान चढ़ावा आये । और अगर ध्यान से देखोगे तो तुम भी पाओगे की सभी धर्मों के धर्मगुरु केवल वेशभूषा से ही तो धार्मिक बने हुए हैं। उनका मुख्य लक्ष्य केवल अपने चरण पुजवाना तथा धार्मिक कलवाना ही तो है ताकि धन मिले और घर बार बढ़ता रहे भंडार भरते रहे । लेकिन जिसे वास्तव में ही परमात्मा की प्यास लगी हो, वह कहीं रुकता है। अभी तक भागते भागते शायद 30 वर्ष हो चुके थे। आखिर में एक और निराशा हाथ लगी। कोई ऐसा ना मिला जो यह दावा करता कि मेरे कहे अनुसार केवल 1 वर्ष चलो, मैं परमात्मा दिखा सकता हूं। आखिर परमात्मा जो अब तक बहुत कुछ देख चुके थे। बहुत उपाय बहुत मालाएं भी फैल चुके थे। लेकिन उस परमात्मा का ,उस खुदा का कहीं भी पता ठिकाना नहीं था जिसकी प्यास लगी थी। तो सोचा कि शायद सारे ही धर्म शास्त्र झूठ बोलते हैं सारे ही बुद्ध झूठ ही बोलते हैं। शायद परमात्मा ,ईश्वर, अल्लाह गॉड ,खुदा ऐसा कोई व्यक्ति ही ना हो। ऐसी कोई वस्तु को कल्पित नाम ही गढ़ा गया हो। हो सकता है पूरी दुनिया ही भ्रम में हो और उसे ढूंढ रही हो जो है ही नहीं। परमात्मा भी अब शांति से बैठ गए। अब कोई दौड़ ही नहीं बची थी जीवन में अब कोई मंजिल नहीं बची थी , अब कोई खोज ही नहीं बची थी। जीवन में अब कहीं जाना नहीं था। ना स्वर्ग पाना था ,ना मोक्ष, ना मुक्ति ,ना बैकुंठ ,ना किसी को पाना था, ना ईश्वर ,ना परमात्मा ,ना खुदा। परमात्मा के लिए सभी मिट गए थे। बस एक ही काम था। रात को लंबी चादर तान कर सोना दिन में खाना, पीना और पार्कों में जाकर विश्राम करना अपना अपना काम धंधा करना और कोई दौड़ नहीं बची थी। कोई अभिलाषा भी नहीं थी। कोई इच्छा भी नहीं थी। अंत में परमात्मा ने सारी मालाये फेंक दी। कंठी ,जनेऊ तोड़ कर फेंक दिए , चोटी कटवा दी । तिलक वगैरह छोड़ दिए गए। कोई ऐसा निशान ना बचा जिससे यह धारणा घर करें कि मैं धार्मिक हूं। जब परमात्मा का साक्षात्कार ही नहीं हुआ तो कैसा धार्मिक? जब ईश्वर ही नहीं मिला तो कैसा धार्मिक? अब जीवन में कुछ भी पाना शेष ना था , कहीं पहुंचना भी शेष ना था। कोई उपाय कोई साधना कुछ भी ना थी। लेकिन ऐसी स्थिति भी ज्यादा दिन ना चली। आखिर तो कुछ और ही होने वाला था। शायद यही उसके होने की आहट थी ,शायद यही मौत की दस्तक थी जिसने सभी कुछ मिटाना था। शायद यही उस शाश्वत जीवन की शुरुआत थी जिससे एक अनहोनी घटना घटी। पार्को में बैठा हुआ अब कौआ जो पहले कभी शायद दिखता भी ना था। अब गीत गाता दिखाई देने लगा। पत्ते जो पेड़ों पर कभी ना दीखते थे आज वही पत्ते पेड़ों पर नाचते हुए दिखाई देने लगे थे पहले पेड़ो के ऊपर लगे पत्ते भी अच्छे नहीं लगते थे और आज पेड़ों के नीचे पड़े हुए सूखे पत्ते भी नृत्य करते नजर आने लगे। पहले जहां शायद फूल भी नजर नहीं आते थे, उनसे भी कुछ ना दिखता था। आज वंही पर कांटे भी सुंदर दिखने लगे। हवा के झोंकों से नाचते प्रतीत होने लगे। कबूतरों का नित्य दिखने लगा। चिड़ियों की मस्ती दिखने लगी। छोटी-छोटी तितलियां भोरे उसी के आनंद के सागर में नृत्य करती प्रतीत होने लगी। सूर्य चांद तारे सभी मुस्कुराते दिखने लगे। फिर तो छोटे छोटे कंकरो पर पत्थरों पर प्रकाश भी नाचता नजर आने लगा। जो प्रकाश आज से पहले भी था जिसके कारण ही हम देख रहे थे वह प्रकाश भी नजर आज तक नहीं आया था। आज वह भी दिखने लगा। आज धूल के कणों के ऊपर प्रकाश नाचता नजर आने लगा। आज अनुभव हुआ कि एक ही सूते में यह पूरी प्रकृति यह पूरी श्रिष्टि हम सभी गुथे हुए हैं। आज ज्ञात हुआ कि परमात्मा की बनाई हुई सृष्टि कितनी सुंदर है, उसमें कौवा भी उतना ही सुंदर है जितनी कोयल। उसमें कुत्ता भी उतना सुंदर है जितनी गाय। अब सृष्टि कितनी सुंदर हो गई थी। और प्रकृति भी और परमात्मा भी अब सभी धारणाये खो गई थी । अब ना तो यह संसार ही पहले वाला संसार बचा था। और ना ही देखने वाला पहले वाला देखने वाला बचा था। अब शायद वह सूक्त शाश्वत मूर्तिमान होकर खड़ा हो गया कि कण-कण में वह परमात्मा विराजमान है। जर्रे जर्रे को वही आलोकित कर रहे है, आज पूरी दुनिया नयी हो गई थी। आज दुनिया को देखने वाला भी नया हो गया था। एक नई ही दृष्टि मिल गई थी और यह कोई भी स्वपन नहीं था। यह तो खुली आंखों से हो रहा था। ऐसा अनेकों दिन रहा धीरे-धीरे सृष्टि ही ऐसी हो गई। फिर कुछ भी ना बदला। वहां सभी कुछ नया हो गया ,वहां परमात्मा भी नया हो गया हो। तब जाकर पता लगा की मैं जिस परमात्मा ढूंढे जा रहा था वो ये ही तो है वही तो महका रहा है। सृष्टि को। वही तो नचाता है सृष्टि को। अब वह साक्षात दिखने लगा था। खुली आंखों से दिखने लगा था। अब तो उसका भी दीदार होने लगा और उसके साथ-साथ स्वयं के जीवन का भी दीदार होने लगा। और यही सच है कि जिस दिन तुम उसे देख पाते हो, उसी दिन स्वयं को भी देखा जा सकता है और जिस दिन स्वयं को देख पाते हो उसी दिन तुम उसे भी देख सकते हो। इतना सब अनुभव होने के बाद परमात्मा ने यही बीड़ा उठाया कि अब जो आनंद अब जो मस्ती उन्हें मिली है, अब जो पागलपन उन्हें मिला है वह संसार को दिया जाए। जो उसके प्रेम की शराब परमात्मा ने पी है वो उन सभी को पिलाई जाये जो उसको पीना चाहते हैं। उन्हें भी दो दो घुट पिलाई जाए और परमात्मा को यह भी ज्ञात हुआ कि यही तो बुद्धत्व है। यही परमात्मा का अवतरण है। परमात्मा उतरता है इसी धारा पर। पूरा पूरा उतरता है बस तुम हटो बीच में से। मैं का मिटना और उसका पैदा होना एक ही साथ घटता है। परमात्मा का अवतार नहीं होता। परमात्मा का अवतरण होता है बुद्धौ में। तभी नाम पड़ा परमात्मा। क्योंकि यंहा सभी तो परमात्मा है। परमात्मा को ज्ञात हो गया। और तुम्हें अभी तक ज्ञात नहीं है। हो तो तुम भी परमात्मा। अगर तुम्हें भी धर्म का पथ जानना है तो मिटो , हटो ,सरको बीच में से। और जीवन का आनंद लो। उसकी बनाई हुई सृष्टि के उत्सव में शामिल हो जाओ




Shri Guru Pramatmana was born in Delhi on October 1967. He belonged to a lower middle class family and did his schooling from government school called Tent Wala School. He was known as Vipin in school. After completing his high school, he did a diploma course in Television and Audio Video. In 1984 he got his first job in Delhi and his salary was Rs 140/- per month. Since this salary was not enough for survival, he did a part time job along with his regular job to earn some extra penny. Along with his job, he enrolled himself in DU for some correspondence course. After clearing his 2nd year, unfortunately he had to discontinue with his education. In 1989, Pramatmana started his own business, he established a manufacturing unit of Colour T.V. In 1997, he even involved in the manufacturing unit of Photo Framing. In the year of 2000, Parmatmana left his parent’s house along with his Wife, daughter and a two and a half year old son. He did not take a single penny from his parents, neither did he ask for any share from his parental property. He came to Delhi NCR and borrowed 40,000/- rupees from his friend and took a loan of 5 lac rupees from bank. With this money he bought a flat at Delhi NCR worth rupees 5.40 lac. Shri Guru Parmatmana was a dedicated man, and he followed the proverb “Where there is a will, there is a way”. Keeping this philosophy in mind intact he started everything from ground once again. With zero cash in hand, he started a new business of providing human resource for cleaning services. He took AMC from shops, farmhouse, kothi etc. He worked hard for his clients and soon settled his business. He made a good reputation and earned a huge amount of money, with this money he bought a land in Vrindavan and built his first Spiritual Asharam on that land. This ashram was ready by 2008. Simultaneously he bought one more huge land in Allahabad along the bank of Ganges for social cause. Parmatmana had also registered two NGO in the named “Vedvyas Foundation” and “Woman Organization for Rural Livelihood and Development”. In this spiritual journey from 1990 to today, Parmatmana gained a lot of devotional knowledge. He even wrote 8-10 holy books. During this holy journey he met lot of Saints and spiritual people from Vrindavan, Hare Krishna movement and even Rishikesh Gyan Marg. Parmatmana also read some Books from Geeta Press, Akahndanand, Kinker, Ram Chandra Dogrey, Tilak, Shanker, Ramanuj, Vivekanand, Buddha etc. helped Parmatmana understand the spirituality well and gain knowledge. On one fine day of the year 2015, Parmatmana met a man (dineshanand disciple of Narayan Dutt Shrimali) randomly who called himself to be a Saint. Few days later Parmatmana realized that, that random man has hypnotized him and ruined his life and his family as well. Parmatmana came to know that, that random man is no saint; instead he is a Tantric, Aghoori, or Vam Margi Sadhak who has some negative energy. The Tantric and his daughter Himmani, his co partner Puneet jain and Birender tiwari and some other guys in his team are well known about this Tantra Vidhya and they use this Tantra Vidya for making money. The Tantric Dineshanand learned this Tantra Vidhya from his pathetic mood guru name was Narayan Dutt Shrimali who used the same tantrik Vidhya for making money. Tantric and his daughter took a complete advantage of their hypnotism and took enough money from Parmatmana and not only that Parmatmana spend huge money on tantrik’s daughter Himmani for her marriage with his own pocket. Not only this, the aghoori Tantric and his daughter even hypnotized some young boy’s teams, those young boys have usually come in the tantrik house. In 2018, somehow Parmatmana managed to come out of hypnotism, but sadly realized that the young boy’s team has been badly trapped in their hypnotism and is now willing to learn Tantra Vidhya, Samshan Kriya and KalaJadu etc. The Tantric & his Pandas some names are puneet jain, tiwari and sharmas have threatened these younger guys in the fear of hell because of which these guys refused to leave them. Parmatmana tried his best to rescue these guys from their trap but all was in vain and are hypnotized by tantric and his daughter Himmani because these guys was totally in their control. This incident was a turning point of his life; from that day onwards Parmatmana decided that he would provide the real spiritual knowledge and Budhatva Marg, to the innocent people. Soon he learned that the Mandir Pujari, Dharam Guru, Tantric Yog Guru, Sadhus and Sanyasis have misguided the innocent people just for the sake of money. In between 1989 to 2015, Parmatmana had an extremely successful business where he earned huge amount of money and lead a lavishing life. During those times he owned BMW & Mercedes and many other luxurious cars, wore diamond rings and exquisite jewelry, expensive watches, not only this he even owned a huge flat in Delhi NCR. During his lavish life he always thought of Moksh and Mukti, he even believed in god deeply. Ever since Parmatmana was hypnotized by that tantric, he decided to devote his rest of the life to the positive side of the spiritual World; he started giving lecture on spiritual knowledge so that he can spread the real Dharam Gyan and true meaning of Moksh, Mukti and God. He completely shifted from a lavish life to real spiritual life. His mission was not to teach any religion, but to create awareness in every human’s mind regarding the true spiritual knowledge. Please follow the following YouTube channel for all his lectures. https://www.youtube.com/c/parmatmaguru/ https://www.youtube.com/c/parmatmaguru/ https://www.youtube.com/c/parmatmanaworld/ https://www.jagteraho.co.in https://parmatmana.com https://www.facebook.com/Parmatmana/ https://www.instagram.com/parmatmana/ His Dream The imagination of a World that is free from superstitious. “PARMATMANA”